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वैदिक ज्योतिष में यह सिद्धांत बहुत महत्वपूर्ण है कि –
“ग्रह संलग्नता (involvement) दर्शाता है, और बल (strength) प्रतिबद्धता (commitment) दर्शाता है।”
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ग्रह संलग्नता दर्शाता है:
जब कोई ग्रह किसी भाव से जुड़ता है — जैसे उस भाव में स्थित हो, उस भाव का स्वामी हो, या उस भाव पर दृष्टि डालता हो — तो वह ग्रह उस भाव से संबंधित विषयों में संलग्न होता है। उदाहरण के लिए:
• यदि शुक्र 7वें भाव से जुड़ा है, तो वह विवाह, संबंध या जीवनसाथी के मामलों में संलग्न है।
• यदि शनि 10वें भाव से जुड़ा है, तो वह करियर, कार्यक्षेत्र या जिम्मेदारी के मामलों में शामिल है।
संलग्नता यह दिखाती है कि ग्रह किस जीवन क्षेत्र में काम कर रहा है।
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बल प्रतिबद्धता दर्शाता है:
ग्रह का बल यह बताता है कि वह कितनी मजबूती से और कितनी स्थिरता से अपने कार्य करेगा। एक शक्तिशाली ग्रह (स्वगृही, उच्च का, मित्र राशि में, शुभ दृष्टि युक्त) अपने क्षेत्र में पूर्ण प्रतिबद्धता और सकारात्मक परिणाम देता है। वहीं एक कमज़ोर ग्रह (नीच का, अस्त, शत्रु राशि में या पाप दृष्ट से प्रभावित) अनिश्चितता, विलंब या बाधा दर्शाता है।
उदाहरण:
• 10वें भाव में बलवान सूर्य हो तो वह नेतृत्व, सम्मान और स्थिर करियर देता है।
• 4वें भाव में निर्बल चंद्र हो तो वह मानसिक अशांति या पारिवारिक असंतुलन दर्शाता है।
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निष्कर्ष:
किसी भी कुंडली का विश्लेषण करते समय यह जानना ज़रूरी है कि कौन-सा ग्रह शामिल है (संलग्नता) और वह कितनी मजबूती से कार्य करेगा (बल)। यही अंतर बताता है कि घटना होगी या नहीं, और अगर होगी, तो किस स्तर तक।